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कलयुग में भक्ति – क्या आज भी सच्चे भक्त होते हैं?

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 ## **कलयुग में भक्ति – क्या आज भी सच्चे भक्त होते हैं?** "कलयुग है केवल नाम अधारा, सुमर-सुमर नर उतरहिं पारा।"   ये पंक्तियाँ बताती हैं कि कलयुग में केवल नाम जपना ही मोक्ष का मार्ग बन गया है। लेकिन सवाल ये उठता है – क्या आज भी सच्ची भक्ति होती है? क्या आज भी ऐसे भक्त होते हैं जो भगवान के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं? आइए, इस रहस्य पर विचार करें। --- ### **कलयुग – सबसे कठिन युग** सनातन धर्म के अनुसार चार युग होते हैं – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग।   * सतयुग में धर्म अपने पूर्ण स्वरूप में था।   * त्रेतायुग में वह तीन भाग शेष रहा।   * द्वापर में दो और   * अब कलयुग में केवल एक चौथाई बचा है। कलयुग में लोभ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या और कामनाएँ मनुष्य पर हावी रहती हैं। लोगों का ध्यान ईश्वर से ज़्यादा भौतिक सुखों की ओर चला गया है। फिर भी, कहते हैं न – "जहाँ अंधकार होता है, वहीं दीपक की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।" --- ### **भक्ति का स्वरूप बदला है, समाप्त नहीं हुआ** आज भक्ति मंदिरों तक सीमित नहीं रही। सोशल मीडिया, मोबाइल ऐप्स, यूट्य...